जिसकी जेब में होंगे पैसे, रेवाडी में उसकी ही बचेगी सांसे
50 हजार दो तो बेड खाली, नहीं तो जगह नही है, प्रशासन भी मौन
रेवाडी: सुनील चौहान। मरीज की भले ही जान चली जाए, इसका न तो जिला प्रशासन पर तथा नही निजी संचालकों पर पर्क पडता हैंं। जी हम बात कर रहे है रेवाडी के निजी अस्पतालों की। पहले फोन मिलाया पैसेंट नोम्रल है उसे आक्सीजन बेड चाहिए तो जबाव मिला कि बेड खाली नहीं हैं। फिर एक दलाल के माध्यम से बात हुई तो पता चला कि तीस से लेकर 40 हजार प्रतिदिन एडवासं देंगे तो आक्सीजन वाला बेड मिल जाएगा। अब एक गरीब श्रमिक कैसे 40 हजार रूपए का इंतजाम करें।
जिला प्रशासन की ओर से हर अस्पताल की जानकारी के नंबर जारी किए है। जब उनसे फोन किया जाता है तो बताया गया कि बेड खाली नहीं है। वहीं उसी अस्पताल में प्रतिदिन 40 से 50 हजार रूपए देने की बात कही जाए तो बेड खाली मिल जाता है। साफ जाहिर है जिला प्रशासन ने सिर्फ डाक्टरो के नंबर जारी है आम जनता को गुमराह कर रहा है। जिसकी जेब में पैसा है समझो उसी की सांसे जारी है।
कागजों में बेड भरे, 50 हजार दो तो खाली: जिला रेवाडी में चिकित्सकों की मानवता किस कदर तार तार हो रही है। इस बात का अंजादा इसी से लगाया है कि जरूरतमंद को अस्पताल मे बेड ही नहीं दिया जाता है। अस्पतालों मेें देख रेख के लिए जिन डाक्टरों के नंबर दिए गए है, उनको कुछ पता नहीं नहीं। किसी प्रकार की बातचीत करने पर यही जबाव दिया जाता है बेड ही नहीं है। जबकि 50 हजार देने पर तुरंत बेड खाली कर दिया जाता है।
मरीज कम भी बेड कैसे है भरे: सबसे अहम बात यह है जब जिला रेवाडी मे कोविड के इतने मरीज ही नहीं है तो फिर बैड कैसे भरे हुए है। पूंजीपतियों व दलालों के चलते अस्पतालों मे मोटी राशि देने पर बेड तैयार कर लिया हैं जबकि गरीब व असहाय के लिए बेड खाली नहीं है। कोरोन की आड मे स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से मिलकर प्राईवेट अस्पताल संचालक जमकर लूट रहे है। हाल मे रेवाडी मे भर्ती होने से पहले से मरीज के पैरेंट ने बताया कि उसे 40 हजार देने पर बेड मिला है। इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्राइवेट अस्पतालों में किस कदर लूट हो रही है।